वाच्य
परिभाषा: वाच्य का शाब्दिक अर्थ है-बोलने का विषय|वाच्य क्रिया का एक रूप हैं क्रिया के जिस रूप से पता चलता है कि वाक्य में करता, कर्म ,अथवा भाव में से किसकी प्रधानता हैं
वाच्य 3 प्रकार के होते है-
1. कर्तृवाच्य।
2. कर्मवाच्य।
3. भाववाच्य।
कर्तृवाच्य (ACTIVE VOICE)
परिभाषा: जिस वाच्य में करता प्रधान होता है और क्रिया का लिंग,वचन,एवं पुरुष कर्ता के अनुसार चलते हैं , उसे कर्तृवाच्य कहते हैं
कर्तृवाच्य में सकर्मक और अकर्मक में से किसी भी क्रिया का प्रयोग होता है
TRICK: जब करता के बाद या तो न हो अथवा कोई करक न हो तब कर्तृवाच्य होता है |
करता + ने = कर्तृवाच्य
करता + शून्य करक( कोई करक न हो) =कर्तृवाच्य
उदहारण:
में कहानी लिखता हूँ
हम गाना गा रहे हैं
राम से पुस्तक पढ़ी जाती है।
मोहन से साइकिल चलाई जाती है।
मोहन से साइकिल चलाई जाती है।
कर्मवाच्य (PASSIVE VOICE)
परिभाषा: जिस वाच्य में कर्म प्रधान होता है और क्रिया का लिंग,वचन,एवं पुरुष कर्म के अनुसार चलते हैं ,उसे कर्मवाच्य कहते हैं|
TRICK: करता + के द्वारा = कर्मवाच्य
करता (निर्जीव हो) = कर्मवाच्य
कर्मवाच्य में सिर्फ सकर्मक क्रिया का ही प्रयोग होता है
उदहारण :
पतंग उड़ रही हैं | (इसमें पतंग निर्जीव है)
सड़क बन रही हैं| (इसमें सड़क निर्जीव है)
किसान के द्वारा खेत जोता जाता हैं
कवियों द्वारा कविताएँ लिखी गई।
भाववाच्य(Quote Voice)
परिभाषा: जिस वाच्य में भाव प्रधान होता है और क्रिया का लिंग,वचन,एवं पुरुष भाव के अनुसार चलते हैं , उसे भाववाच्य कहते हैं |
भाववाच्य में सिर्फ अकर्मक क्रिया का ही प्रयोग होता है
TRICK: करता + से (नहीं ) = भाववाच्य
उदहारण:
रोगी से बैठा नहीं जाता |
बालक से पढ़ा नहीं जाता |
आज मिलकर पढ़ा जाये |
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